Tuesday, December 17, 2019

तुम आना

तुम आना 
किसी जश्न की तरह नही 
न किसी त्रासदी की तरह 
जब भी आना 
एक चोट बन कर आना 
हल्की और गहरी चोट
तुम्हारे चले जाने के बाद 
मेरा वादा है तुमसे 
मैं तुम्हारे निशान 
अपनी इस त्वचा पर 
सम्भाल कर रखूंगा 
             -- आकर्ष
                

Sunday, December 15, 2019

क्या होता होगा ?

क्या होता होगा ? 
जब पीड़ा सारी सीमाएं लांघ रहा हो 
और आंखों में आंसू न आने दिए जाएं 
क्या होता होगा ?
जब पूरा शरीर जल रहा हो 
और तड़पने की इजाजत न हो 
क्या होता होगा ?
जब किसी प्यासे पक्षी को 
रेगीस्तान में छोड़ दिया जाए 
क्या होता होगा ?
जब पानी जमने लगे 
और मछलियों को निकलने न दिया जाए
क्या होता होगा ?
जब तुम मुझे रोज दिखाई दो 
और मैं तुम्हे गले न लगा सकूं 
                 -आकर्ष

Tuesday, January 8, 2019

अलाव की आंच

मैं देख पा रहा हूँ,
सर्द हवाओं का सहलाना
अलाव का मुस्कुराना
हाथ फैलाये खड़े लोग
जैसे कोई शाही भोज
हवा में तैरती बातें
पुआल पे सोती रातें
धीमी धीमी सी आवाज़
" ठंडी बढ़ गयी है आज"

मैं देख पा रहा हूँ
द्वार पर एक नन्हा बालक
अपनी लढिया का चालक
न अलाव से कोई मित्रता
न  कुहरे से कोई शत्रुता
चल रहा है समय के साथ
कस कर पकड़े उसका हाथ

मैं पूछ रहा हूँ समय से
ठंडी पड़ी अलाव की आग का पता
कहां गए बाबा तू ये भी बता
कहां गयी मेरी प्यारी लढिया
खटिये पर सो रही वो बुढ़िया
पुआल पर सो रहे वो लोग
आह ये वियोग!आह ये वियोग!

@आकर्ष शुक्ल विद्रोही